कि ये दिन है या रात है
इन चीखती चाहतों के बीच- खामोश
कुछ तेरे मेरे ज़ज़्बात हैं .
हैं आरज़ूओं के बोझ तले- दबे
पर ज़िंदा मेरे ख्वाब हैं .
ये नज़र उठती तो देख पातीं
इस इंसानी जहाँ से आगे भी
खूबसूरत एक कायनात है .
ये दुनिया ही तय क्यों करे
एक इंसान की क्या औकात है .इन चीखती चाहतों के बीच- खामोश
कुछ तेरे मेरे ज़ज़्बात हैं .
हैं आरज़ूओं के बोझ तले- दबे
पर ज़िंदा मेरे ख्वाब हैं .
ये नज़र उठती तो देख पातीं
इस इंसानी जहाँ से आगे भी
खूबसूरत एक कायनात है .
ये दुनिया ही तय क्यों करे
जो जी गए हैं मरके भी
ये मौत भी उनकी ग़ुलाम है .
हों नफे -नुक्सान में लिपटी जिनकी बातें
उन्हें हर सांस की क्या पहचान है
कोई, एक मुस्कराहट से उसका जहांँ बदल दे
ख़ामोशी से हर नज़र को ऐसे फ़रिश्ते को तलाश है
ये दुनिया ही तय क्यों करे
कि ये दिन है या रात है
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