मैं पूछूंगा कल -
इस शाम से
जो आज ढल गई है
कि क्यों ?
जो इतनी खूबसूरत हो कर भी
रात की काली बाँहों बिखर जाती हो .......
मैं पूछूंगा कल -
इस मुस्कुराती सुबह से
जो आज दुपहर से पहले जल गई है
कि क्यों ?
बेहिसाब रोशनी के लालच में
अपनी सुर्ख लालिमा को,
आग के हवाले कर जाती हो .....
मैं पूछूंगा कल -
मेरी नींद में हर रोज़ झाँकने वाले ,
एक सपने से भी
जो कही ओझल हो गया है
कि क्यों ?...........
जो बंद नज़रों के दायरे में
मेरी बदहवासी का,
हाथ थामते हो
पर नजरो के खुलते ही,
खुद डगमगा जाते हो ...........
मैं पूछूंगा कल -
इस शाम से
जो आज ढल गई है..........
इस शाम से
जो आज ढल गई है
कि क्यों ?
जो इतनी खूबसूरत हो कर भी
रात की काली बाँहों बिखर जाती हो .......
मैं पूछूंगा कल -
इस मुस्कुराती सुबह से
जो आज दुपहर से पहले जल गई है
कि क्यों ?
बेहिसाब रोशनी के लालच में
अपनी सुर्ख लालिमा को,
आग के हवाले कर जाती हो .....
मैं पूछूंगा कल -
मेरी नींद में हर रोज़ झाँकने वाले ,
एक सपने से भी
जो कही ओझल हो गया है
कि क्यों ?...........
जो बंद नज़रों के दायरे में
मेरी बदहवासी का,
हाथ थामते हो
पर नजरो के खुलते ही,
खुद डगमगा जाते हो ...........
मैं पूछूंगा कल -
इस शाम से
जो आज ढल गई है..........