मैं जानता हूँ-
आजकल -
एकाकी- पन की गोद में ,
वो खोई धुन, तुम गाती होगी .
मैं पहचानता हूँ-
वो बेबस मुस्कान
जो दुनिया को,
तुम्हारे अधरों पर
इक नूर सी नज़र आती होगी .
मैं जानता हूँ कि -
किसी याद का दबे पाँव,
हर रात -
तुम्हारे सपनों में,
बेवजह आना होता होगा
पर दिन के 'निर्जीव कोलाहल' में
वो दूर तुमसे बिचड़ जाती होगी.
महसूस करता हूँ-
मैं अक्सर -
तुममे समाये उस 'शून्य' को.
मैं जानता हूँ -
उसमे समां जाने की ख्वाहिश
तुम्हारे दिल में,
आती होगी.
पर, मैं सोचता हूँ-
जब भी,
तुम्हारे उन 'खूबसूरत लम्हों' को
यकीन है मुझे ,
कि उनकी शरारत
तुम्हारी आँखों के,
किसी कोने में ,
एक हलकी सी चमक छोड़ जाती होंगी ....
मैं जानता हूँ-
आजकल -
एकाकी- पन की गोद में ,
वो खोई धुन, तुम गाती होगी ..............................
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