हर रोज़ मेरे ख्यालों का , तुम -
जुदा रास्तों के राही हैं -कब से ,
क्यों हमसफ़र सा रिश्ता रखते हो .
तुमसे छुपाएं और तुम्हीं से कह दें,
ये तो , वो अब दौर नहीं .
दरम्यां , ऐतबार तब जो नज़रों में था ,
क्यों अब ऐसी आस रखते हो .
दायरा -ऐ- ज़िन्दगी , कुछ यूँ बढ़ चला है अब ,
तो, ऐसी कोई गुंजाईश नहीं .
नए छोर तलाशें अब अपने ,
क्यों बेवजह आज़माइश करते हो .
शायद, फिर किसी और दौर में , जब -
हम खुद से रू -बरू होंगे
ये किस्सा अब यहीं रहने दो ,
क्यों दुनिया के पैंतरे हम पर चलते हो .
अब क्यों हिस्सा बनते हो .
जुदा रास्तों के राही हैं -कब से ,
क्यों हमसफ़र सा रिश्ता रखते हो .
तुमसे छुपाएं और तुम्हीं से कह दें,
ये तो , वो अब दौर नहीं .
दरम्यां , ऐतबार तब जो नज़रों में था ,
क्यों अब ऐसी आस रखते हो .
दायरा -ऐ- ज़िन्दगी , कुछ यूँ बढ़ चला है अब ,
तो, ऐसी कोई गुंजाईश नहीं .
नए छोर तलाशें अब अपने ,
क्यों बेवजह आज़माइश करते हो .
शायद, फिर किसी और दौर में , जब -
हम खुद से रू -बरू होंगे
ये किस्सा अब यहीं रहने दो ,
क्यों दुनिया के पैंतरे हम पर चलते हो .
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