गुज़ारना होता है ...
उस तंग चौराहे से जब कभी ...
उन रहनुमा नज़रों का ...
ऊपर उठना, अक्सर याद आ जाता है .
चंद लम्हों के, रूमानी साथ की
छाँव में उनके ,
मुझे मेरा उस ,
बेरहम धूप से भी ...
हंसकर खेलना , अक्सर ...
याद आ जाता है ....
उस चौराहे पर ,
हमारी मुलाकातें , अक्सर खामोश ...
बातें किया करती थीं ...
आज - कल अपने ही आवारा लफ़्ज़ों में ,
मुझे ,
उन खामोशियों का अफसाना ,
याद आ जाता है .
शायद वही चेहरा ,
हाँ ....
यकीनन - वही चेहरा
अब भी ,
दिल के किसी छिपे कोने से .....
जब भी गुज़ारना होता है ...
उसी तंग चौराहे से जब कभी ...
इन आँखों में ...
इक लाज़मी सी हकीकत बन
उतार आता है .
गुज़ारना होता है ....
उस तंग चौराहे से जब कभी .............
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