साँसों के तराजू पर -
तुम ज़िन्दगी- कम क्यों तोलते हो ?
आखिर कितना ?
कैसा?
मुनाफा चाहते हो -
जो, बेलगाम हसरतें सोचते हो .
जैसे कि -
कोई बाज़ी जीत ली हो,
ऐसी बेजान मुस्कान, क्यों ओढ़ते हो ?
लम्हा - लम्हा बचाकर
क्या कोई,
नई ज़िन्दगी सींचते हो ?
थोडा ठहरकर
सोचो गर तो -
साँसों के तराजू पर
तुम खुद को ही तो तोलते हो .
तो बताओ आखिर क्यों तुम
अपनी ही ज़िन्दगी कम तोलते हो ?
ankhir kyuuuuuuuuuuuuuuuu????
ReplyDeletesaurav ke deep thoughts :-) nice!
Pushkar SIngh Rawal