साकार कल्पना भी मेरी
विचारों की भूल - भुलैया में
हो मार्गदर्शक भी तुम मेरी
मैं जो था निस्तेज अक्षम
हौसलों से पस्त हरदम
आशा किरण थी तुम मेरी
चांदनी रात भी तुम मेरी
शाम के दामन में निखरता
दिन का सौंदर्य भी तुम मेरी
एकाकी पन की वेदना में
संवेदना भी तुम मेरी
निः शब्द जीवन मैं किसे कहूँ ?
एकांत जीवन भी तुम मेरी
दिन में तारे सद्रश्य हो गए हों
ऐसी सुन्दर कल्पना भी तुम मेरी.....................
प्रेरणा हो तुम मेरी
साकार कल्पना भी मेरी............
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