इस दिल की खिड़की के पास-
कुछ एहसास
अक्सर बैठ जाया करते हैं
ये सोचकर-
कि कोई तो जानी पहचानी याद
उनके सामने से होकर गुजरेगी.
और रूक कर उनसे बातें करेगी ........
कुछ बेचैनियाँ-
नज़रों के दरवाजों को
बंद नहीं होने देतीं.
ये सोचकर कि -
कोई तो नज़र
उनके सामने से होकर गुजरेगी
और रुख मिलाकर उनसे बातें करेगी......
होठों का खामोश सिलसिला भी
बदस्तूर जारी है
इस उम्मीद में कि -
किसी के लफ़्ज़ों का मेला
उन पर सजेगा.
और मुस्कुराहटों की बारिश होगी.
वो दिन कितना ख़ुशनसीब होगा
जिस दिन-
ये दिल-नज़र- होंठ
अपनी ख्वाहिशों में
समां सकेंगे..........................................
saurav, very nice poem and its good that you are doing regular posts keep going! dude.
ReplyDeleteek poem mene bhi likhi hai
Teri blog ki namkeen mastiyan
Teri poem ki beparwaah gustakhiyaan
Nahi bhoolunga main
Jab tak hai jaan, jab tak hai jaan
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pushkar singh