कभी नई अभिलाषा बनकर
कभी तो, नई परिभाषा बनकर
तुम ह्रदय - ज्वार जगा जाते हो.
निर्दयी कोलाहल - रंजित इस दुनिया में
तुम मृदु स्वर से-
परिचय करा जाते हो.
आते हो नैराश्य हरने कभी -
कभी तो -
बेचैनी जगा जाते हो ..
कभी स्वप्न लोक की दुनिया में
तुम यथार्थ को भी ले आते हो
कभी यथार्थ के मरुधर पर
तुम स्वप्नों की वृष्टि करा जाते हो.
वेदनाओं का अंधड़ हो
या रक्त रंजित कोई क्षण हो
संवेदनाओं का रूप धर कर
कभी तुम अक्षुण मित्र बन जाते हो .
मिलना होता है तुमसे जब भी
बस एक विचार बनकर आ जाते हो
और एकाकी ह्रदय के उपवन में
मेरे कदमो से कदम मिलाते हो........
कभी तो, नई परिभाषा बनकर
तुम ह्रदय - ज्वार जगा जाते हो.
निर्दयी कोलाहल - रंजित इस दुनिया में
तुम मृदु स्वर से-
परिचय करा जाते हो.
आते हो नैराश्य हरने कभी -
कभी तो -
बेचैनी जगा जाते हो ..
कभी स्वप्न लोक की दुनिया में
तुम यथार्थ को भी ले आते हो
कभी यथार्थ के मरुधर पर
तुम स्वप्नों की वृष्टि करा जाते हो.
वेदनाओं का अंधड़ हो
या रक्त रंजित कोई क्षण हो
संवेदनाओं का रूप धर कर
कभी तुम अक्षुण मित्र बन जाते हो .
मिलना होता है तुमसे जब भी
बस एक विचार बनकर आ जाते हो
और एकाकी ह्रदय के उपवन में
मेरे कदमो से कदम मिलाते हो........
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