Saturday, January 19, 2013

INTROSPECTION........




साँसों के तराजू पर -
तुम ज़िन्दगी- कम क्यों तोलते हो ?
 आखिर कितना ?
 कैसा?
मुनाफा चाहते हो -
जो, बेलगाम हसरतें सोचते हो .

जैसे कि -
 कोई बाज़ी जीत ली हो,
ऐसी  बेजान मुस्कान, क्यों ओढ़ते हो ?

लम्हा - लम्हा बचाकर
क्या कोई,
 नई ज़िन्दगी सींचते हो ?
थोडा ठहरकर
सोचो गर तो -
साँसों के तराजू पर
तुम खुद को ही तो तोलते हो .

तो बताओ आखिर क्यों तुम
अपनी ही ज़िन्दगी कम तोलते हो ?

Sunday, January 13, 2013

प्रेरणा हो तुम मेरी

प्रेरणा हो तुम मेरी 
साकार कल्पना भी मेरी
विचारों की भूल - भुलैया में 
हो मार्गदर्शक भी तुम मेरी

मैं  जो था निस्तेज अक्षम
हौसलों से पस्त हरदम 
आशा किरण थी तुम मेरी
चांदनी रात भी तुम मेरी

शाम के दामन में निखरता
दिन का सौंदर्य भी तुम मेरी
एकाकी पन की वेदना में
संवेदना भी तुम मेरी

निः  शब्द  जीवन मैं  किसे कहूँ ?
एकांत जीवन भी तुम मेरी
दिन में तारे सद्रश्य  हो गए हों
ऐसी सुन्दर कल्पना भी तुम मेरी.....................

प्रेरणा हो तुम मेरी 
साकार कल्पना भी मेरी............

Friday, January 11, 2013

THAT DAY..........


इस दिल की खिड़की  के पास-

 कुछ एहसास
अक्सर बैठ जाया करते हैं
ये सोचकर-
कि कोई तो जानी पहचानी याद
उनके सामने से होकर गुजरेगी.
और रूक कर उनसे बातें करेगी ........

कुछ  बेचैनियाँ-

नज़रों के दरवाजों को
बंद नहीं होने देतीं.
ये सोचकर कि -
कोई तो  नज़र
उनके सामने से होकर गुजरेगी
और रुख मिलाकर उनसे बातें करेगी......

होठों का खामोश सिलसिला भी

बदस्तूर जारी है
इस उम्मीद में कि -
किसी के लफ़्ज़ों का मेला
उन पर सजेगा.
और मुस्कुराहटों की बारिश होगी.

वो दिन कितना ख़ुशनसीब होगा

जिस दिन-
 ये दिल-नज़र- होंठ
 अपनी ख्वाहिशों में
समां सकेंगे..........................................