Sunday, March 10, 2013

कुछ चाहतें गुलज़ार थीं ....................

वो चाहतें हज़ार थीं
जो दिल  पे सवार थीं.
वो बेधड़क दौड़ती
 कुछ कोशिशें  गुलज़ार थीं .

न कोई कायदों की बंदिश
न शर्तें पहरेदार  थीं .
वो काली रात बहुत हसीं थी
जो दिन से चमकदार थी

न ज़िन्दगी को तौलने की
कोई साजिश खूंखार थी
न वजह - बेवजह ही,
संगीन कोई तकरार थी .

वो मरमरी आवाज़ की संजीदगी
सजाती हर एक शाम थी
वो रूठने - मनाने का खेल
जिसमे जीत, न कोई हार थी

वो नक़्शे - कदम पहचानने की
जो आदत समझदार थी
वो सड़ी - गली  हुरमतों को
घूरती नज़रें  कमाल थी

वो बेईमानी की काली ज़बान
न तुमको - हमको याद थी
एक दुसरे पर टिकी हो जैसे ,
 कोई भरोसे की बुनियाद थी

वो बात तुमको याद थी,
वो शाम मुझको  याद थी
इस भीड़ में खो जाने से पहले
वो आखिरी मुलाक़ात याद थी.........................

 कुछ चाहतें गुलज़ार थीं ....................




 हुरमत - मर्यादा ( Esteem, Reputaion, dignity)
 मरमरी -  गोरी , श्वेत  ( White colored )


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