Tuesday, October 1, 2013

गलियाँ इतनी हैं अँधेरी

गलियाँ  इतनी हैं अँधेरी
देखो कहीं हम डर न जायें
रात है छोटी ये मगर पर
देखो कहीं हम खो न जायें

तंग रास्तों के इस जहाँ में
कई मंजिला सपने हैं
पर जल्द हकीकत  से मिलने को

कहीं, सपने वो बदसूरत हो न जायें

आज बागीचों ठंडी हवाओं का
साथ बदस्तूर जारी है
पर पतझड़ की गर्म हवाओं में
कहीं साथ न  इनका छूट  जाये

किसी दूर जहाँ में लगता  है
उन सुरीली आवाजों  का वो अब भी मेला
चलो चलें उस मेले में'
कहीं, ये सांस कि मद्धम हो न जाये


गलियाँ  इतनी हैं अँधेरी
देखो कहीं हम डर न जायें.........

No comments:

Post a Comment