Sunday, July 13, 2014

ऐसा ज़रूरी तो नहीं .

खामोशियाँ हमको  हमेशा  सताएं 
ऐसा  जरूरी  तो  नहीं 
लफ्ज़  ही दिल  से  दिल की  गुफ्तगू  कराएं 
ऐसा  ज़रूरी  तो  नहीं .

माना ये, कि मंज़िल ज़ालिम है मगर -

इस सफर की खूबसूरती से यकीन उठ जाये
ऐसा जरूरी तो नहीं .


जिस दिल को मनाने में, अपने एहसास गिरवी रख दिए हों 
वो दिल, आखिर में अपना हो जाये 
ऐसा ज़रूरी तो नहीं 

एक लहर जो अपने साहिल से मिलने को जा रही है 

उनका मिलन अमर हो जाये 
ऐसा जरूरी तो नहीं.

एक बेहतर लम्हे की तलाश में,

 यूँ ही, उन मासूम लम्हों का क़त्ल कर बैठे 
अपनी ही रूह की अदालत में निर्दोष साबित हो जाएँ 
ऐसा ज़रूरी तो नहीं .


किसी पुराने कांटे को, जो अब तक संभाल के रखा है 

वक़्त उसे, उसी के  घाव की दवा बना दे 
ऐसा ज़रूरी तो नहीं ....

है रात ये काली और डरावनी मगर -

 इस दिन की रोशनी,आसमानी चादर  को तारों से सजा दे 
ऐसा ज़रूरी तो नहीं ....

खामोशियाँ हमको  हमेशा  सताएं 

ऐसा  जरूरी  तो  नहीं 

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