Sunday, April 17, 2016

बेपरवाह






चलो आज फिर से कहीं बैठो यार
कोई साज पुराना  तो छेड़ो यार!
ये दुनियादारी कितनी बेदम है
एक कश सांस का ,दम भर खींचो यार!!

देखो -कितनी आवाज़ों का जंजाल यहाँ है
जो आपस में ही उलझी हैं!
दम घोंठती इनकी बातें नहीं
अब अपनी ख़ामोशी का दामन पकड़ो यार !!

ये रोज़ -रोज़ ही खुद से झगड़ा
आखिर किसकी खातिर तुम करते हो!
बेपरवाह इस दुनिया में
 कभी, खुद की परवाह करना सीखो यार!!

बहुत हुई खुद की काला बाज़ारी
अब कोई असली खरीददार ढूंढो यार !
जो दे सके बदले में दो सुहाने पल
किसी ऐसे को , खुद को बेचो यार!!


चलो आज फिर से कहीं बैठो यार....





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