Sunday, February 7, 2016

मैं आज भी उससे मिलता हूँ

मैं आज भी उससे मिलता हूँ
पर वो इंसान  तो कोई और है
कल उसकी बातों में बे - फ़िक्री थी
आज उनमे दुनिया के बेवजह दस्तूर हैं

एक शाम कहा था उसने मुझसे -
कि  इस दुनिया की वो सैर करे
आज अपनी ही बनाई किसी दुनिया में
वो - कैद, पर मशगूल है

मेरे लफ्ज़ मुस्कुरा जाते थे
जब उसकी बातों में खुद को पाते थे
हैं आज वो लफ्ज़  ज़िंदा मगर 
उसकी बातों में अब न वो नूर है

ये  शामे बयां करती थीं, उसका ज़िक्र
बड़े अदब और पैमाने से
 उन्ही  शामों  ने मुझसे कहा
 कि  वो इंसान आज कोई और है...

मैं आज भी उससे मिलता हूँ.......

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